विवाह अमान्य योग्य, इस पर गुजारा भत्ता से इंकार नहीं: हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि किसी पत्नी को केवल यह सोचकर गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उसकी शादी अमान्य हो सकती है। यह फैसला न्यायमूर्ति राजीव लोचन शुक्ल ने श्वेता जायसवाल की याचिका पर सुनाया। कोर्ट ने चंदौली के परिवार न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक पत्नी को गुजारा भत्ता देने से मना किया गया था। इस फैसले का महिलाओं के अधिकारों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव आएगा।
हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में परिवार न्यायालय के तर्क को विकृत और अवैध करार दिया। कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी विवाह को कानूनी रूप से अमान्य घोषित नहीं किया जाता, तब तक पत्नी का दर्जा और उसके अधिकार बरकरार रहते हैं।
- शादी अमान्य होने की आशंका पर गुजारा भत्ता रोकना अनुचित
- पत्नी के कानूनी दर्जे और अधिकारों की पुष्टि
- परिवार न्यायालय के फैसले को रद्द किया गया
मामले की पृष्ठभूमि
श्वेता जायसवाल ने अपने पति से व्यक्तिगत गुजारा भत्ते की मांग की थी। परिवार न्यायालय ने उनकी मांग खारिज कर दी थी, लेकिन उनकी नाबालिग बेटी को 2000 रुपये प्रतिमाह मंजूर किए थे। न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला था कि श्वेता बिना किसी उचित कारण पति से अलग रह रही थीं।
हाईकोर्ट के फैसले का प्रभाव
इस फैसले से महिलाओं के अधिकारों को मजबूती मिलेगी। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि विवाह शून्यकरणीय पाए जाने के बाद भी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है। यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है और भविष्य में ऐसे मामलों में निर्णय लेने का आधार बन सकता है।
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