बिहार में बाल विवाह के मामलों में 70% की गिरावट: रिपोर्ट
बिहार में बाल विवाह की प्रथा में उल्लेखनीय कमी आई है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में बालिका विवाह के मामलों में 70% और बच्चों की विवाह दर में 68% की गिरावट दर्ज की गई है। यह सकारात्मक बदलाव महिला सशक्तीकरण और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने वाली योजनाओं का परिणाम है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रगति के साथ, 2030 तक बिहार से बाल विवाह का पूर्ण उन्मूलन संभव हो सकता है। यह रिपोर्ट बाल अधिकारों पर काम करने वाले संगठन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन द्वारा जारी की गई है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
‘टिपिंग प्वाइंट टू जीरो : एविडेंस टूवार्ड्स ए चाइल्ड मैरेज फ्री इंडिया’ नामक इस रिपोर्ट में बिहार के 150 गांवों का सर्वेक्षण किया गया। इसमें कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं:
- 92% उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके गांवों में बाल विवाह या तो पूरी तरह बंद हो गया है या काफी हद तक कम हो गया है।
- 99% लोगों को बाल विवाह रोकथाम कानूनों की जानकारी है।
- 89% ने यह जानकारी गैर-सरकारी संगठनों से प्राप्त की।
- 97% उत्तरदाताओं ने जागरूकता अभियानों को बाल विवाह के खिलाफ सबसे प्रभावी माध्यम बताया।
बाल विवाह के कारण
रिपोर्ट में बाल विवाह के प्रमुख कारणों का भी उल्लेख किया गया है:
- 90% मामलों में गरीबी प्रमुख कारण है।
- 65% मामलों में अच्छा जीवनसाथी मिलने की चिंता।
- 39% परिवार सुरक्षा कारणों से बाल विवाह करते हैं।
सकारात्मक परिवर्तन की ओर
स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों ने इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, स्व. कन्हाई शुक्ला सामाजिक सेवा संस्थान ने पिछले तीन वर्षों में वैशाली, बक्सर और सीवान जिलों में 2000 से अधिक बाल विवाह रोके हैं। संस्थान के सचिव सुधीर कुमार शुक्ला ने कहा, “बाल विवाह के मामले में बिहार देश के शीर्ष राज्यों में था। लेकिन अब बदलाव की लहर चल रही है और हमें अप्रत्याशित सफलता मिली है।”
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि सामुदायिक जागरूकता और सरकारी नीतियों के संयुक्त प्रयास से बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई पर अंकुश लगाया जा सकता है। हालांकि, इस दिशा में और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है ताक
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