पति नाबालिग तो भी होगा भरण पोषण का वाद: हाईकोर्ट ने बरेली
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि नाबालिग पति के खिलाफ भी भरण-पोषण की मांग की जा सकती है। यह निर्णय बरेली के एक मामले में दिया गया, जहां एक 13 साल के लड़के की शादी कर दी गई थी। जब वह 16 साल का हुआ, तब उसकी पत्नी ने उससे भरण-पोषण मांगा। कोर्ट ने माना कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 और 128 के तहत नाबालिग के खिलाफ भी भरण-पोषण का आवेदन किया जा सकता है। यह फैसला बाल विवाह और नाबालिगों के अधिकारों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि और कोर्ट का निर्णय
इस मामले में अभिषेक सिंह यादव नाम के एक व्यक्ति की शादी 13 साल की उम्र में शीला देवी से कर दी गई थी। जब अभिषेक 16 साल के हुए, तब शीला ने उनसे भरण-पोषण की मांग की। निचली अदालत ने शीला और उनके बच्चे के लिए क्रमशः 5000 और 4000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण का आदेश दिया था।
- अभिषेक ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी
- उन्होंने तर्क दिया कि नाबालिग होने के कारण उन पर भरण-पोषण का दावा नहीं किया जा सकता
- हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया
कोर्ट के निर्णय के मुख्य बिंदु
हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो नाबालिगों के खिलाफ भरण-पोषण के आवेदन को रोकता हो। कोर्ट ने माना कि कोई भी सक्षम व्यक्ति अपनी पत्नी या बच्चे का भरण-पोषण करने से इनकार करता है तो उसके खिलाफ आवेदन किया जा सकता है।
भरण-पोषण राशि में संशोधन और निर्देश
हालांकि, कोर्ट ने भरण-पोषण की राशि में संशोधन किया। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए, हाई कोर्ट ने भरण-पोषण राशि को पत्नी के लिए 2500 रुपये और बच्चे के लिए 2000 रुपये प्रति माह कर दिया। यह राशि पति की अनुमानित आय का 25% है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अगर कोई बकाया राशि है तो उसकी गणना इसी आधार पर की जाए।
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